जाने कौन से हैं वो स्त्रोत जिनमे छुपे हैं पुत्र प्राप्ति के उपाय

आज के युग में पुत्र और पुत्री संतान में कोई भेद नहीं रह गया हैं पुत्रियां भी पुत्रो की तरह पढ़ लिख कर आगे बढ़ गयी हैं और अपने माता पिता ही नहीं बल्कि समाज में अपने देश का नाम भी ऊँचा कर रही हैं 

पुत्र जहा कुल को बढ़ाने वाला होता हैं वही पुत्रियां अपने संतुलित और सुगठित व्यक्तित्व से दोनों कुलो के यश में वृद्धि करती हैं 

परन्तु इस बात से भी मुह नहीं मोडा  जा सकता की जिन  के घर में पुत्र नहीं होता उनको समाज में हीन  दृष्टि से देखा जाता हैं कभी कभी तो ऐसे दम्पतियो को तानो का सामना भी करना पढ़ता हैं धन और पुत्र की कामना तो हर किसी को होती हैं 

आज हम पुत्र प्राप्ति के लिए किये जाने वाले कुछ सात्विक उपायों की चर्चा करने वाले हैं भगवान् ने वः तो इन्हे अपनाकर आप अवश्य ही पुत्र संतान की प्राप्ति करेंगे 

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जन्म कुंडली के अनुसार पुत्र का भाव 

जन्म कुंडली के अनुसार पंचम भाव को संतानकारक भाव कहा गया हैं इस से जातक की संतान के वषय में जाना जा सकता हैं कि उसके कितने पुत्र और पुत्रियां होंगी 

पंचमेश यदि निर्बल हो उस पर पाप ग्रहो कि दृष्टि हो अथवा पंचम भाव का कारक  ग्रह पाप ग्रहो के साथ बैठा हो और कुंडली में देव गुरु बृहस्पति निर्बल अवस्था में हो तो पुत्र संतान या तो होती नहीं या फिर काफी बाधाओं के बाद होती हैं 

इस स्थिति में जातक को पुत्र प्राप्ति के लिए उपायों का सहारा लेना चाहिए इस आर्टिकल में हम कुछ मंत्रो, स्त्रोतों और उपायों का वर्णन करने जा रहे हैं जिन्हे अपना कर भगवान् कि कृप्या से अवश्य ही आपको  पुत्र प्राप्ति होगी 

याद रहे औषधि औषधि चिल्लाने से रोग ठीक नहीं होता उसके लिए औषधि खानी भी पढ़ती हैं अतः नियमित रूप से उपायों का अनुसरण करें जैसा लेख में समझाया गया हैं 

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1) संतान गोपाल स्त्रोत 

संतान गोपाल स्त्रोत पुत्र प्राप्ति के लिए अत्यंत प्रभावशाली और अचूक स्त्रोत हैं यदि आपको भी पुत्र कि कामना हैं तो इसका नित्य प्रति एक बार पाठ जरूर करें हो सके तो पति पत्नी दोनों इस पाठ का जाप नित्य करें 

यदि किसी कारणवश दोनों ना कर सके तो पति या पत्नी दोनों में से एक को तो अवश्य ही करना चाहिए संतान गोपाल स्त्रोत का पाठ हरिवंश पुराण के आखिरी पन्ने पर वर्णित हैं 

इस पाठ का जाप नित्य प्रति करने से अवश्य ही पुत्र रत्न कि प्राप्ति होती हैं यह अनुभूत प्रयोग हैं 

एक साल तक नित्य जाप करें 

संतान गोपाल स्त्रोत इस प्रकार हैं 

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय |
श्रीशं कमल पत्राक्षं देवकी नन्दनम हरिम ||
सूत सम्प्राप्तये कृष्णम नमामि मधुसूदनम ||
नमाम्यहं वासुदेवं सुतसम्प्राप्तये हरिम |
यशोदाकगतं बल गोपालं नन्द नदनं ||
अस्माकं पुत्र लाभाय गोविंदम मुनि वंदितं |
नमाम्यहं वासुदेवं देवकी नन्दनम सदा ||
गोपाल डिम्भकं वन्दे  कमलापतिमच्युतम |
पुत्र सम्प्राप्तये कृष्णं नमामि यदुपङ्गवम ||

पुत्रकामेष्टिफलदं कञ्जाक्षं कमलापतिम् ।
देवकीनन्दनं वन्दे सुतसम्प्राप्तये मम ।। ५ ।।
पद्मापते पद्मनेत्रे पद्मनाभ जनार्दन ।
देहि मे तनयं श्रीश वासुदेव जगत्पते ।। ६ ।।
यशोदाङ्कगतं बालं गोविन्दं मुनिवन्दितम् ।
अस्माकं पुत्र लाभाय नमामि श्रीशमच्युतम् ।। ७ ।।
श्रीपते देवदेवेश दीनार्तिर्हरणाच्युत ।
गोविन्द मे सुतं देहि नमामि त्वां जनार्दन ।। ८ ।।
भक्तकामद गोविन्द भक्तं रक्ष शुभप्रद ।
देहि मे तनयं कृष्ण रुक्मिणीवल्लभ प्रभो ।। ९ ।।
रुक्मिणीनाथ सर्वेश देहि मे तनयं सदा ।
भक्तमन्दार पद्माक्ष त्वामहं शरणं गतः ।। १० ।।
देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ।। ११ ।।
वासुदेव जगद्वन्द्य श्रीपते पुरुषोत्तम ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ।। १२ ।।
कञ्जाक्ष कमलानाथ परकारुणिकोत्तम ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ।। १३ ।।
लक्ष्मीपते पद्मनाभ मुकुन्द मुनिवन्दित ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ।। १४ ।।
कार्यकारणरूपाय वासुदेवाय ते सदा ।
नमामि पुत्रलाभार्थ सुखदाय बुधाय ते ।। १५ ।।
राजीवनेत्र श्रीराम रावणारे हरे कवे ।
तुभ्यं नमामि देवेश तनयं देहि मे हरे ।। १६ ।।
अस्माकं पुत्रलाभाय भजामि त्वां जगत्पते ।
देहि मे तनयं कृष्ण वासुदेव रमापते ।। १७ ।।
श्रीमानिनीमानचोर गोपीवस्त्रापहारक ।
देहि मे तनयं कृष्ण वासुदेव जगत्पते ।। १८ ।।
अस्माकं पुत्रसंप्राप्तिं कुरुष्व यदुनन्दन ।
रमापते वासुदेव मुकुन्द मुनिवन्दित ।। १९ ।।
वासुदेव सुतं देहि तनयं देहि माधव ।
पुत्रं मे देहि श्रीकृष्ण वत्सं देहि महाप्रभो ।।२० ।।
डिम्भकं देहि श्रीकृष्ण आत्मजं देहि राघव ।
भक्तमन्दार मे देहि तनयं नन्दनन्दन ।। २१ ।।
नन्दनं देहि मे कृष्ण वासुदेव जगत्पते ।
कमलनाथ गोविन्द मुकुन्द मुनिवन्दित ।। २२ ।।
अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम ।
सुतं देहि श्रियं देहि श्रियं पुत्रं प्रदेहि मे ।। २३ ।।
यशोदास्तन्यपानज्ञं पिबन्तं यदुनन्दनं ।
वन्देऽहं पुत्रलाभार्थं कपिलाक्षं हरिं सदा ।। २४ ।।
नन्दनन्दन देवेश नन्दनं देहि मे प्रभो ।
रमापते वासुदेव श्रियं पुत्रं जगत्पते ।। २५ ।।
पुत्रं श्रियं श्रियं पुत्रं पुत्रं मे देहि माधव ।
अस्माकं दीनवाक्यस्य अवधारय श्रीपते ।। २६ ।।
गोपाल डिम्भ गोविन्द वासुदेव रमापते ।
अस्माकं डिम्भकं देहि श्रियं देहि जगत्पते ।। २७ ।।
मद्वाञ्छितफलं देहि देवकीनन्दनाच्युत ।
मम पुत्रार्थितं धन्यं कुरुष्व यदुनन्दन ।। २८ ।।
याचेऽहं त्वां श्रियं पुत्रं देहि मे पुत्रसंपदम्।
भक्तचिन्तामणे राम कल्पवृक्ष महाप्रभो ।। २९ ।।
आत्मजं नन्दनं पुत्रं कुमारं डिम्भकं सुतम् ।
अर्भकं तनयं देहि सदा मे रघुनन्दन ।। ३० ।।
वन्दे सन्तानगोपालं माधवं भक्तकामदम् ।
अस्माकं पुत्रसंप्राप्त्यै सदा गोविन्दमच्युतम् ।। ३१ ।।
ॐकारयुक्तं गोपालं श्रीयुक्तं यदुनन्दनम् ।
क्लींयुक्तं देवकीपुत्रं नमामि यदुनायकम् ।। ३२ ।।
वासुदेव मुकुन्देश गोविन्द माधवाच्युत ।
देहि मे तनयं कृष्ण रमानाथ महाप्रभो ।। ३३ ।।
राजीवनेत्र गोविन्द कपिलाक्ष हरे प्रभो ।
समस्तकाम्यवरद देहि मे तनयं सदा ।। ३४ ।।
अब्जपद्मनिभं पद्मवृन्दरूप जगत्पते ।
देहि मे वरसत्पुत्रं रमानायक माधव ।। ३५ ।।
नन्दपाल धरापाल गोविन्द यदुनन्दन ।
देहि मे तनयं कृष्ण रुक्मिणीवल्लभ प्रभो ।। ३६ ।।
दासमन्दार गोविन्द मुकुन्द माधवाच्युत ।
गोपाल पुण्डरीकाक्ष देहि मे तनयं श्रियम् ।। ३७ ।।
यदुनायक पद्मेश नन्दगोपवधूसुत ।
देहि मे तनयं कृष्ण श्रीधर प्राणनायक ।। ३८ ।।
अस्माकं वाञ्छितं देहि देहि पुत्रं रमापते ।
भगवन् कृष्ण सर्वेश वासुदेव जगत्पते ।। ३९ ।।
रमाहृदयसंभारसत्यभामामनः प्रिय ।
देहि मे तनयं कृष्ण रुक्मिणीवल्लभ प्रभो ।। ४० ।।
चन्द्रसूर्याक्ष गोविन्द पुण्डरीकाक्ष माधव ।
अस्माकं भाग्यसत्पुत्रं देहि देव जगत्पते ।। ४१ ।।
कारुण्यरूप पद्माक्ष पद्मनाभसमर्चित ।
देहि मे तनयं कृष्ण देवकीनन्दनन्दन ।। ४२ ।।
देवकीसुत श्रीनाथ वासुदेव जगत्पते ।
समस्तकामफलद देहि मे तनयं सदा ।। ४३ ।।
भक्तमन्दार गम्भीर शङ्कराच्युत माधव ।
देहि मे तनयं गोपबालवत्सल श्रीपते ।। ४४ ।।
श्रीपते वासुदेवेश देवकीप्रियनन्दन ।
भक्तमन्दार मे देहि तनयं जगतां प्रभो ।।४५ ।।
जगन्नाथ रमानाथ भूमिनाथ दयानिधे ।
वासुदेवेश सर्वेश देहि मे तनयं प्रभो ।। ४६ ।।
श्रीनाथ कमलपत्राक्ष वासुदेव जगत्पते ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ।। ४७ ।।
दासमन्दार गोविन्द भक्तचिन्तामणे प्रभो ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ।। ४८ ।।
गोविन्द पुण्डरीकाक्ष रमानाथ महाप्रभो ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ।। ४९ ।।
श्रीनाथ कमलपत्राक्ष गोविन्द मधुसूदन ।
मत्पुत्रफलसिद्ध्यर्थं भजामि त्वां जनार्दन ।। ५० ।।
स्तन्यं पिबन्तं जननीमुखांबुजं विलोक्य मन्दस्मितमुज्ज्वलाङ्गम् ।
स्पृशन्तमन्यस्तनमङ्गुलीभिर्वन्दे यशोदाङ्कगतं मुकुन्दम् ।। ५१ ।।
याचेऽहं पुत्रसन्तानं भवन्तं पद्मलोचन ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ।। ५२ ।।
अस्माकं पुत्रसम्पत्तेश्चिन्तयामि जगत्पते ।
शीघ्रं मे देहि दातव्यं भवता मुनिवन्दित ।। ५३ ।।
वासुदेव जगन्नाथ श्रीपते पुरुषोत्तम ।
कुरु मां पुत्रदत्तं च कृष्ण देवेन्द्रपूजित ।। ५४ ।।
कुरु मां पुत्रदत्तं च यशोदाप्रियनन्दनम् ।
मह्यं च पुत्रसन्तानं दातव्यंभवता हरे ।। ५५ ।।
वासुदेव जगन्नाथ गोविन्द देवकीसुत ।
देहि मे तनयं राम कौशल्याप्रियनन्दन ।। ५६ ।।
पद्मपत्राक्ष गोविन्द विष्णो वामन माधव ।
देहि मे तनयं सीताप्राणनायक राघव ।। ५७ ।।
कञ्जाक्ष कृष्ण देवेन्द्रमण्डित मुनिवन्दित ।
लक्ष्मणाग्रज श्रीराम देहि मे तनयं सदा ।। ५८ ।।
देहि मे तनयं राम दशरथप्रियनन्दन ।
सीतानायक कञ्जाक्ष मुचुकुन्दवरप्रद ।। ५९ ।।
विभीषणस्य या लङ्का प्रदत्ता भवता पुरा ।
अस्माकं तत्प्रकारेण तनयं देहि माधव ।। ६० ।।
भवदीयपदांभोजे चिन्तयामि निरन्तरम् ।
देहि मे तनयं सीताप्राणवल्लभ राघव ।। ६१ ।।
राम मत्काम्यवरद पुत्रोत्पत्तिफलप्रद ।
देहि मे तनयं श्रीश कमलासनवन्दित ।। ६२ ।।
राम राघव सीतेश लक्ष्मणानुज देहि मे ।
भाग्यवत्पुत्रसन्तानं दशरथप्रियनन्दन ।
देहि मे तनयं राम कृष्ण गोपाल माधव ।। ६४ ।।
कृष्ण माधव गोविन्द वामनाच्युत शङ्कर ।
देहि मे तनयं श्रीश गोपबालकनायक ।। ६५ ।।
गोपबाल महाधन्य गोविन्दाच्युत माधव ।
देहि मे तनयं कृष्ण वासुदेव जगत्पते ।। ६६ ।।
दिशतु दिशतु पुत्रं देवकीनन्दनोऽयं
दिशतु दिशतु शीघ्रं भाग्यवत्पुत्रलाभम् ।
दिशतु दिशतु शीघ्रं श्रीशो राघवो रामचन्द्रो
दिशतु दिशतु पुत्रं वंश विस्तारहेतोः ।। ६७ ।।
दीयतां वासुदेवेन तनयोमत्प्रियः सुतः ।
कुमारो नन्दनः सीतानायकेन सदा मम ।। ६८ ।।
राम राघव गोविन्द देवकीसुत माधव ।
देहि मे तनयं श्रीश गोपबालकनायक ।। ६९ ।।
वंशविस्तारकं पुत्रं देहि मे मधुसूदन ।
सुतं देहि सुतं देहि त्वामहं शरणं गतः ।। ७० ।।
ममाभीष्टसुतं देहि कंसारे माधवाच्युत ।
सुतं देहि सुतं देहि त्वामहं शरणं गतः ।।७१ ।।
चन्द्रार्ककल्पपर्यन्तं तनयं देहि माधव ।
सुतं देहि सुतं देहि त्वामहं शरणं गतः ।।७२ ।।
विद्यावन्तं बुद्धिमन्तं श्रीमन्तं तनयं सदा ।
देहि मे तनयं कृष्ण देवकीनन्दन प्रभो ।। ७३ ।।
नमामि त्वां पद्मनेत्र सुतलाभाय कामदम् ।
मुकुन्दं पुण्डरीकाक्षं गोविन्दं मधुसूदनम् ।। ७४ ।।
भगवन् कृष्ण गोविन्द सर्वकामफलप्रद ।
देहि मे तनयं स्वामिंस्त्वामहं शरणं गतः ।। ७५ ।।
स्वामिंस्त्वं भगवन् राम कृष्न माधव कामद ।
देहि मे तनयं नित्यं त्वामहं शरणं गतः ।। ७६ ।।
तनयं देहिओ गोविन्द कञ्जाक्ष कमलापते ।
सुतं देहि सुतं देहि त्वामहं शरणं गतः ।।७७ ।।
पद्मापते पद्मनेत्र प्रद्युम्न जनक प्रभो ।
सुतं देहि सुतं देहि त्वामहं शरणं गतः ।। ७८ ।।
शङ्खचक्रगदाखड्गशार्ङ्गपाणे रमापते ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ।। ७९ ।।
नारायण रमानाथ राजीवपत्रलोचन ।
सुतं मे देहि देवेश पद्मपद्मानुवन्दित ।। ८० ।।
राम राघव गोविन्द देवकीवरनन्दन ।
रुक्मिणीनाथ सर्वेश नारदादिसुरार्चित ।। ८१ ।।
देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते ।
देहि मे तनयं श्रीश गोपबालकनायक ।। ८२ ।।
मुनिवन्दित गोविन्द रुक्मिणीवल्लभ प्रभो ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ।। ८३ ।।
गोपिकार्जितपङ्केजमरन्दासक्तमानस ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ।। ८४ ।।
रमाहृदयपङ्केजलोल माधव कामद ।
ममाभीष्टसुतं देहि त्वामहं शरणं गतः ।। ८५ ।।
वासुदेव रमानाथ दासानां मङ्गलप्रद ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ।। ८६ ।।
कल्याणप्रद गोविन्द मुरारे मुनिवन्दित ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ।। ८७ ।।
पुत्रप्रद मुकुन्देश रुक्मिणीवल्लभ प्रभो ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ।। ८८ ।।
पुण्डरीकाक्ष गोविन्द वासुदेव जगत्पते ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ।। ८९ ।।
दयानिधे वासुदेव मुकुन्द मुनिवन्दित ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ।। ९० ।।
पुत्रसम्पत्प्रदातारं गोविन्दं देवपूजितम् ।
वन्दामहे सदा कृष्णं पुत्र लाभ प्रदायिनम् ।। ९१ ।।
कारुण्यनिधये गोपीवल्लभाय मुरारये ।
नमस्ते पुत्रलाभाय देहि मे तनयं विभो ।। ९२ ।।
नमस्तस्मै रमेशाय रुमिणीवल्लभाय ते ।
देहि मे तनयं श्रीश गोपबालकनायक ।। ९३ ।।
नमस्ते वासुदेवाय नित्यश्रीकामुकाय च ।
पुत्रदाय च सर्पेन्द्रशायिने रङ्गशायिने ।। ९४ ।।
रङ्गशायिन् रमानाथ मङ्गलप्रद माधव ।
देहि मे तनयं श्रीश गोपबालकनायक ।। ९५ ।।
दासस्य मे सुतं देहि दीनमन्दार राघव ।
सुतं देहि सुतं देहि पुत्रं देहि रमापते ।। ९६ ।।
यशोदातनयाभीष्टपुत्रदानरतः सदा ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ।।९७ ।।
मदिष्टदेव गोविन्द वासुदेव जनार्दन ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ।। ९८ ।।
नीतिमान् धनवान् पुत्रो विद्यावांश्च प्रजापते ।
भगवंस्त्वत्कृपायाश्च वासुदेवेन्द्रपूजित ।। ९९ ।।
यःपठेत् पुत्रशतकं सोऽपि सत्पुत्रवान् भवेत ।
श्रीवासुदेवकथितं स्तोत्ररत्नं सुखाय च ।। १०० ।।
जपकाले पठेन्नित्यं पुत्रलाभं धनं श्रियम् ।
ऐश्वर्यं राजसम्मानं सद्यो याति न संशयः ।। १०१ ।।

2) हरिवंश पुराण का पाठ 

हरिवंसश पुराण का पाठ करने से भी वंश वृद्धि होती हैं हरिवंश पुराण के अध्यायों का समर्थ अनुसार पाठ करें यदि समय का आभाव हो तो उपरोक्त पाठ भी फलदायी हैं अशुद्ध अवस्था में कोई भी पाठ ना करें 

3) दुर्गा सप्तशती का श्लोक 

इस श्लोक का जाप नवरात्रो में किया जाता हैं इसमंत्र का  सवा  लाख जाप करने का माहात्म्य बताया गया हैं यह मंत्र स्वयं देवी द्वारा कहा गया हैं इसका जाप करने से बाधाओं का भी नाश होता हैं और मनुष्य सभी बाधाओं से मुक्ति पाकर धन धान्य और पुत्र रत्न से संपन्न होता हैं अतः संशय नहीं करना चाहिए 
इस मन्त्र का जाप करने वाले को निश्चित ही पुत्र प्राप्ति होती हैं 

मंत्र इस प्रकार हैं 

सर्वबाधा विनिर्मुक्तो धन्यधान्य सुताविन्तः |
मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति ना संशयः ||

भगवान विष्णु जी कि उपासना 

जो व्यक्ति भगवान् विष्णु जी कि आराधना करता हैं और बृहस्पति वार का व्रत करता हैं उसे पुत्र रत्न कि अवश्य ही प्राप्ति होती हैं व्रत के दोरन केले के वृक्ष कि पूजा करनी चाहिए कथा करने के साथ ही विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ भी करना चाहिए और अपनी मनोकामना केले कि पूजा के दुराण अवश्य ही भगवान् जी से कहे 

किसी कारण यदि व्रत नहीं कर सकते तो श्री कृष्ण के बाल स्वरूप कि सेवा करनी चाहिए किसी शिभ मुहूर्त में लड्डू गोपाल को घर में लाए और अपने पुत्र कि भांति उनका लालन पालन और सेवा श्रुषा करें 
भगवान् कृष्ण आपकी मनोकामना अवश्य पूरी करेंगे 

नमक चमक रूद्र अभिषेख 

भगवान् भोलेनाथ तो आशुतोष नाम से भी जाता जाता हैं जिसका अर्थ हैं आशाओ को पुराण करने वाले देव भगवान शिव धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्रदान करने वाले देव हैं 
वै ही विपत्ति का नाश करने वाले भी हैं भगवान् शिव जल्दी प्रस्सन हो जाने वाले देव हैं उनके विषय में अक्सर अपने सुना होगा 

सकल अमंगल मेटन हारी |
भावी मेट सके त्रिपुरारी ||

अतः आपको उनकी शरण में जाना चाहिए रूद्राभिषेख से प्रसन्न होकार अवशय ही पुत्र प्रदान करते हैं 

सावन के महीने में हो सके तो नामक चमक रुद्रभिषेख अवश्य कराये इस अभिषेख में हर चीज़ पांच गुना अधिक होती हैं और ये अत्यंत शक्तिशाली रुद्राभिषेक होता हैं 
ऐसा करने से आपकी इच्छा अवश्य ही पुरन  होगी 

संतान गणपति  स्त्रोत 

भगवान् गणेश जी को विघ्नहर्ता भी कहा जाता हैं इनकी पूजा अर्चना करने वाले पर किसी तरह का संकट नहीं आता और ना ही उसे जीवन में बाधाओं का सामना करना पड़ता हैं क्युकी स्वयं गणेश जी उसके जीवन में आने वाले विघ्न हर लेते हैं पुत्र कि कामना रखने वाले दंपत्ति को चाहिए कि वह संतान गणपति स्त्रोत का पाठ करें 

संतान गणपति स्त्रोत इस प्रकार हैं 

 नमोउस्त गणनाथय सिदिद बुद्धिद युताय च|
 सर्वप्रदाय  देवाय पुत्र  वृद्धि  प्रदाय  च||
 गुरुदराय  गुरवे गोप्त्रे   गुह्या   सिताय  ते |
 गोप्याय गोपिता  शेषभुवनाय  चिदात्मने/
 विश्वव मूलाय भव्याय विश्व सुष्टि कराय ते ||
 नमो  नमस्ते सत्याय  सत्य पूर्णाय शुणिडने 
 एक दन्ताय  शुद्धादाय  सुमुखाय नमो नम ||
 प्रपन्न जनपालाय  प्रणतार्तिविनाशिने |
 शरणं   भव  देवेश  संतति  सुदुढा कुरु||
 भविष्यन्ति  च ये पुत्रा  मत्कुले  गणनायक
 ते सर्वे तव पूजार्थ  निरताः   स्युर्वरो  मतः |
 पुत्रप्रदमिदं स्त्रोतं  सर्वसिद्धि प्रदायकम ||

इस स्त्रोत का पाठ शुक्ल पक्ष के किसी भी बुधवार से शुरू करके नित्य एक पाठ करें 

ध्यान देने योग्य बाते 👇

आप अपनी सुविधा अनुसार कोई भी उपाय अपना सकते हैं अशुद्ध अवस्था में पाठ ना करें मरणाशौच (पातक ) और जननाशौच (सूतक ) के समय भी पाठ ना करें मॉस मदिरा आदि का भी त्याग करें 

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