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जैसा कि आपने शीर्षक में पढ़ा कि अगर पाना चाहते हैं सरकारी नौकरी तो जरूर करें यह उपाय आज मैं आपको उसी से रिलेटेड जानकारी देने वाली हूं हमारे ब्लॉग ज्योतिष और धर्म मैं ऐसी जानकारियां प्रकाशित होती रहती हैं तो कृपया इसे सब्सक्राइब जरूर करें
Photo by Ketut Subiyanto from Pexels
सरकारी नौकरी के लिए कारक ग्रह
सूर्य के कारक तत्व
सूर्य ग्रह को कैसे करें प्रसन्न
अभी मैं आपके सामने कुछ ऐसे ही सावधानियां बताने जा रही हूं जो आपको आम जिंदगी में बर्तनी चाहिए ताकि सूर्यदेव आपके अनुकूल ही रहे
- किसी से विदा लेने से बचें यानी की मुफ्त की कोई चीज वस्तु ना ले
- अंध विद्यालय में अपनी जेब के अनुसार कुछ ना कुछ दान करते रहे
- वर्ष में एक दो बार बुजुर्गों को कुछ ना कुछ भेंट अवश्य दें
- किसी तरह की राख़ को घर में संभाल कर ना रखें
- जब भी हो सके बंदरों को गुड़ और चने खिलाए
- घर में गंगाजल यहां कोई कुदरती जलस्रोत काजल सहेज कर रखें
- हमेशा साफ-सुथरे और सज सवरकर कर रहे
- रविवार के दिन नमक, तेल ,अदरक का सेवन ना करें
- पिता की आज्ञा का पालन करें और उनसे बनाकर रखें उनका अपमान ना करें
- गायत्री मंत्र का जाप करें
योग से करें सूर्य देव को प्रसन्न
मंत्रों का जाप
2. ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।।
3. ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते, अनुकंपयेमां भक्त्या, गृहाणार्घय दिवाकर:।
4. ॐ ह्रीं घृणिः सूर्य आदित्यः क्लीं ॐ ।
5. ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय नमः ।
किसी भी एक मंत्र का जाप नित्य प्रति 10,28 108 की संख्या में करें
सूर्य की अशुभता दूर करने के लिए दान
सूर्य के लिए हम गेहूं, साबुत मसूर ,गुड़ ,गुड़ से बने पदार्थ ,देसी घी से भरा हुआ नया बर्तन, भुनी मूंगफली,गेहूं, सूखे मेवे जो भी हो ,वह हम दान कर सकते हैं
सूर्य के लिए रत्न
सूर्य के लिए रत्न भी धारण किया जा सकता है सूर्य का रत्न है माणिक्य लेकिन आप अपनी कुंडली दिखाकर ही यह रत्न धारण करें अपने आप से धारण ना करें रतन का अलग प्रभाव होता है दान करने के लिए रविवार का दिन चुन सकते हैं संक्रांति और हस्त नक्षत्र भी विशेष महत्व रखते हैं उस दिन भी दान किया जा सकता है सूर्य की होरा में भी आप दान कर सकते हैं
सूर्य की शुभता पाने के लिए व्रत
सूर्य की शुभता को बढ़ाने के लिए और आशुभता को खत्म करने के लिए आप सूर्य देव का व्रत भी रख सकते हैं यह व्रत रविवार के दिन रखा जाता है इस दिन खट्टी चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए और व्रत विधान पर पता करके ही व्रत रखें यह व्रत शुक्ल पक्ष के प्रथम रविवार से शुरू करना चाहिए और एक कम से कम 1 साल तक हर रविवार इस व्रत को जारी रखना चाहिए फिर इस का उद्यापन किया जाता है
सूर्य को अर्घ्य
आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ
आदित्य हृदय स्तोत्र सभी प्रकार के पापों , कष्टों और शत्रुओं से मुक्ति कराने वाला , सर्व कल्याणकारी, आयु, उर्जा और प्रतिष्ठा बढाने वाला अति मंगलकारी विजय स्तोत्र है.वाल्मीकि रामायण के अनुसार "आदित्य हृदय स्तोत्र" अगस्त्य ऋषि द्वारा भगवान् श्री राम को युद्ध में रावण पर विजय प्राप्ति हेतु दिया गया था.
ॐ अस्य आदित्यह्रदय स्तोत्रस्य अगस्त्यऋषि: अनुष्टुप्छन्दः आदित्यह्रदयभूतो
भगवान् ब्रह्मा देवता निरस्ताशेषविघ्नतया ब्रह्माविद्यासिद्धौ सर्वत्र जयसिद्धौ च विनियोगः
पूर्व पिठिता
ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम् । रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम् ॥1॥
दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम् । उपगम्याब्रवीद् राममगस्त्यो भगवांस्तदा ॥2॥
राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्मं सनातनम् । येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे ॥3॥
आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम् । जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम् ॥4॥
सर्वमंगलमागल्यं सर्वपापप्रणाशनम् । चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वर्धनमुत्तमम् ॥5॥
मूल -स्तोत्र
रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम् । पुजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ॥6॥
सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावन: । एष देवासुरगणांल्लोकान् पाति गभस्तिभि: ॥7॥
एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिव: स्कन्द: प्रजापति: । महेन्द्रो धनद: कालो यम: सोमो ह्यापां पतिः ॥8॥
पितरो वसव: साध्या अश्विनौ मरुतो मनु: । वायुर्वहिन: प्रजा प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकर: ॥9॥
आदित्य: सविता सूर्य: खग: पूषा गभस्तिमान् । सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकर: ॥10॥
हरिदश्व: सहस्त्रार्चि: सप्तसप्तिर्मरीचिमान् । तिमिरोन्मथन: शम्भुस्त्वष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान् ॥11॥
हिरण्यगर्भ: शिशिरस्तपनोऽहस्करो रवि: । अग्निगर्भोऽदिते: पुत्रः शंखः शिशिरनाशन: ॥12॥
व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजु:सामपारग: । घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः ॥13॥
आतपी मण्डली मृत्यु: पिगंल: सर्वतापन:। कविर्विश्वो महातेजा: रक्त:सर्वभवोद् भव: ॥14॥
नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावन: । तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते ॥15॥
नम: पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नम: । ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नम: ॥16॥
जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नम: । नमो नम: सहस्त्रांशो आदित्याय नमो नम: ॥17॥
नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नम: । नम: पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते ॥18॥
ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सुरायादित्यवर्चसे । भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नम: ॥19॥
तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने । कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नम: ॥20॥
तप्तचामीकराभाय हरये विश्वकर्मणे । नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ॥21॥
नाशयत्येष वै भूतं तमेष सृजति प्रभु: । पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभि: ॥22॥
एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठित: । एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम् ॥23॥
देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतुनां फलमेव च । यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमं प्रभु: ॥24॥
एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च । कीर्तयन् पुरुष: कश्चिन्नावसीदति राघव ॥25॥
पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगप्ततिम् । एतत्त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि ॥26॥
अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि । एवमुक्ता ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम् ॥27॥
एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत् तदा ॥ धारयामास सुप्रीतो राघव प्रयतात्मवान् ॥28॥
आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान् । त्रिराचम्य शूचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान् ॥29॥
रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थं समुपागतम् । सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत् ॥30॥
अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितमना: परमं प्रहृष्यमाण: ।
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ॥31॥



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